छठ पर्व (Chhath Festival) और षष्ठी का अपभ्रंश है. कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन है और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है. इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया.
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छठ पर्व (Chhath Festival) वर्ष में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में. चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है.
छठ व्रत कथा (Chhath Puja Story)
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है और इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है. शिशु के जन्म के छह दिनों के बाद भी इन्हीं देवी की पूजा करके बच्चे के स्वस्थ, सफल और दीर्घ आयु की प्रार्थना की जाती है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी मिलता है, जिनकी नवरात्र की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.