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Chhath Puja~छठ पूजा


छठ पूजा, सौर देवता की पूजा का त्यौहार है, जो दुनिया में एकमात्र ऐसा त्यौहार है जहां भक्त उगते सूर्य और डूबते सूर्य दोनों को नमस्कार करते हैं। दीपावली के ठीक 6 दिन बाद हिंदू कैलेंडर में कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानि कार्तिक महीने के 6 वें दिन छठ पूजा की जाती है। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर-नवंबर के महीने में आता है। दिवाली के एक हफ्ते बाद रोशनी का त्यौहार, छठ आता है। एक रात और दिन के लिए लोग व्यावहारिक रूप से नदी के किनारे या पड़ोस में किसी अन्य जल निकाय में जाते हैं, जहां सूर्य देव का अनुष्ठान किया जाता है। छठ शब्द संख्या छह को दर्शाता है और इस प्रकार यह नाम स्वयं के रूप में कार्य करता है त्यौहार पंचांग पर इस शुभ दिन की याद दिलाते हैं। छठ के त्यौहार की एक सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि छठ एक हिंदू पर्व है लेकिन कई मुस्लिम परिवार भी कुछ खास स्थानों पर इस पवित्र त्योहार में भाग लेते हैं।

छठ पर्व( छठ )कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

छठ पर्व पर सूर्य षष्ठी का व्रत करने का विधान है । इसे करने वाली स्त्रियाँ धन-धान्य, पति-पुत्र तथा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहती हैं। यह व्रत बडे नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। इसमे तीन दिन के कठोर उपवास का नियम है। इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को पंचमी को एक बार नमक रहित भोजन करना पडता है। षष्ठी को निर्जल रहकर व्रत करना पडता है । षष्ठी को अस्त होते हुए सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करके अर्घ्य देते हैं। सप्तमी के दिन प्रात:काल नदी या तालाब में जाकर स्नान करते हैं। स्त्रियाँ सूर्योदय होते ही अर्घ्य देकर जल ग्रहण करके व्रत को खोलती हैं।

सूर्यषष्ठी-व्रत के अवसर पर सायंकालीन प्रथम अर्घ्य से पूर्व मिट्टी की प्रतिमा बनाकर षष्ठी देवी का आवाहन एवं पूजन करते हैं। पुनः प्रातः अर्घ्य देने से पूर्व षष्ठीदेवी का पूजन कर विसर्जन करते हैं। मान्यता है कि पंचमी के सायंकाल से ही घर में भगवती षष्ठी का आगमन हो जाता है। इस प्रकार भगवान्‌ सूर्य के इस पावन व्रत में शक्ति और ब्रह्म दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है । इसीलिये भारत में यह पर्व ‘सूर्यषष्ठी’ के नाम से विख्यात है।

सूर्यषष्ठी-व्रत के प्रसाद में ऋतु-फल के अतिरिक्त आटे और गुड से शुद्ध घी में बने ‘ठेकुआ’ का होना अनिवार्य है; ठेकुआ पर लकडी के साँचे से सूर्यभगवान्‌ के रथ का चक्र भी अंकित करना आवश्यक माना जाता है। इस व्रत का प्रसाद माँगकर खाने का रिवाज है।

इस पर्व के संबंध में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कथा यह है कि लंका विजय के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो दीपावली मनाई गई। जब राम का राज्याभिषेक हुआ, तो राम और सीता ने सूर्य षष्ठी के दिन तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना की। इसके अलावा एक कथा यह भी है कि सूर्य षष्ठी को ही गायत्री माता का जन्म हुआ था। इसी दिन ऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र निकला था। पुत्र प्राप्ति के लिए भी गायत्री माता की उपासना की जाती है।

एक वाक्य यह भी है कि अपना राजपाट खो चुके जंगलों में भटकते पांडवों की दुर्दशा से व्यथित दौपद्री ने सूर्यदेव की उपासना की थी।

 



 

Chhath puja is the festival of worship of the solar deity, the only festival in the world where devotees greet both the rising sun and the setting sun. Just 6 days after Deepawali, Chhath Puja is performed on the 6th day of Kartik Shukthi i.e. Kartik month in Hindu calendar. It falls in the month of October – November according to the Gregorian calendar. Chhath, the festival of Shine, comes a week after Diwali. For one night and day, people go to practically any other water body along the river or in the neighborhood, where the Sun God is performed. The word Chhath signifies the number six and thus the name itself acts as a festival to remind us of this auspicious day on the almanac. One of the biggest features of Chhath festival is that Chhath is a Hindu festival but many Muslim families also participate in this holy festival in some special places.

Chhath Parv (Chhath) is a Hindu festival celebrated on the Shashthi of Kartik Shukla. This unique folk festival of Suryopasana is mainly celebrated in Bihar, Jharkhand, eastern Uttar Pradesh and Nepal's Terai regions of eastern India.

There is a law to observe Surya Shashthi fast on Chhath festival. The women who do this are full of wealth, husband and son and happiness and prosperity. This fast is observed with great rules and devotion. It consists of a three-day rigorous fast. Women who observe this fast have to eat salt-free food once on Panchami. Shashthi has to fast by remaining waterless. On setting up the Shashthi, he worships the Sun methodically and offers Arghya. On the morning of Saptami, they go to the river or pond and bathe in the morning. As soon as sunrise, women open the fast by taking Arghya and consuming water.

On the occasion of Suryasthi-fast, before making the first Arghya in the evening, a clay statue is made and invoked and worshiped by Shashthi Devi. Before offering arghya again in the morning, they worship Shashtidevi and immerse her. It is believed that Bhagwati Shashthi arrives at home from the evening of Panchami. In this way, the worship of both Shakti and Brahm is received simultaneously in this holy fast of Lord Sun. That is why this festival in India is known as 'Suryashthi'.

It is mandatory to have 'Thekua' made in pure ghee from flour and good in addition to Ritu-fruit in the offerings of Suryashthi-vrat; It is considered necessary to inscribe the wheel of the chariot of the Sun God with a wooden mold on the Thekua. It is customary to ask for Prasad and eat it.

There are many stories in relation to this festival. One story is that when Lord Rama returned to Ayodhya after the victory of Lanka, Diwali was celebrated. When Rama was crowned, Rama and Sita worshiped the sun on the day of Surya Shashthi to obtain a bright son. Apart from this, there is also a story that Gayatri Mata was born to Surya Sasthi. The Gayatri Mantra came out of the mouth of sage Vishwamitra on this day. Gayatri Mata is also worshiped for getting a son.

There is also a sentence that Droupadi, who was distressed by the plight of Pandavas wandering in the jungles who had lost their kingdom, worshiped Suryadev.

 
 
 
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