क्या आपने ध्यान दिया है कि जब आप स्नान करते हैं, जब आप अपने ऊपर पानी डालते हैं, तो सिर्फ आपकी त्वचा की ही सफाई नहीं होती, कुछ और भी साफ होता है। मान लेते हैं, आप बहुत क्रोधित या चिढ़े हुए हैं और आपके भीतर बहुत सी चीजें चल रही हैं। आप सिर्फ स्नान कर लें, तो आपको महसूस होगा कि सारी नकारात्मकता बह गई है।
स्नान का मतलब सिर्फ आपके शरीर की त्वचा की सफाई नहीं है, आप कुछ हद तक अपने आभामंडल को भी शुद्ध कर सकते हैं।
।आप जो कुछ भी हैं, आभामंडल उसकी एक सूक्ष्म अभिव्यक्ति है। अगर आप किसी के आभामंडल को देखें, तो आप उसके शारीरिक स्वास्थ्य, उसके मानसिक स्वास्थ्य, उसका कार्मिक ढांचा – एक तरीके से उसके अतीत और वर्तमान, और अगर वह बेवकूफ है, तो उसका भविष्य भी साफ.-साफ देख सकते हैं। अगर आप बेवकूफ हैं, तभी हम आपका भविष्य बता सकते हैं, वरना हम सिर्फ आपका अतीत बता सकते हैं।
आप अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए बहुत से तरीके सीख सकते हैं – योगिक क्रियाओं से लेकर सही ढंग से भोजन करने तक। जिस तरह आप जल से स्नान करते हैं, आप वायु-स्नान भी कर सकते हैं। मान लीजिए मन्द हवा बह रही है। अगर आप पतला कपड़ा पहन कर उस हवा में खड़े हो जाएं, तो कुछ देर बाद आपको बहुत साफ. सुथरा और पारदर्शी महसूस होगा। लिंग भैरवी में क्लेश-नाशन क्रिया की जाती है। यह एक ऐसी क्रिया है जो अशुद्धियों को नष्ट कर देती है।अगर वायु की गति, स्पर्श, तापमान और बाकी सब कुछ सही है, तो वायु आपको शुद्ध करती है। यह वायु-स्नान है। हम आपको मिट्टी से स्नान भी कराते हैं। इसी तरह, हम आपको अग्नि स्नान भी करा सकते हैं।
प्रकाश हमारे लिए बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि हमारे देखने के उपकरण यानी हमारी आंखें बनाई ही ऐसी गई हैं।
आज आपके पास बिजली की रोशनी है, इसलिए आप दीया के होने पर आश्चर्य कर सकते हैं। लेकिन सिर्फ कुछ सौ वर्ष पहले की स्थिति की कल्पना कीजिए, घर में दीये के बिना कोई काम नहीं हो सकता था। ऐतिहासिक रूप से, दीया दो वजहों से हमारे घरों का एक जरूरी अंग था। पहला- तब बिजली के बल्ब नहीं थे। दूसरा- घर जैविक सामग्रियों से बनते थे, इसलिए लोग बड़ी-बड़ी खिड़कियां नहीं बना सकते थे। आम तौर पर पुराने जमाने के घर अंदर से अंधकारमय होते थे। आज भी आपने देखा होगा कि गांवों के पुराने घरों और झोपड़ियों के भीतर आम तौर पर अंधेरा होता है। इसलिए दिन के समय भी दीया जलाकर रखा जाता था और उसके आस-पास पूजा का एक स्थान बना दिया जाता था।
यह परंपरा का एक हिस्सा है कि सही वातावरण बनाने के लिए, आपको सबसे पहले दीया जलाना होता है। आज हम अपनी समस्याओं के कारण यह नहीं कर सकते, इसलिए हम बिजली के बल्बों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आपमें से जो लोग दीया जलाते हैं, अगर आप सिर्फ उसके आस-पास रहें तो एक फर्क महसूस करेंगे। जरूरी नहीं है कि उसे अंधकार में जलाया जाए, जरूरी नहीं कि दीये से देखने में मदद मिले लेकिन क्या आपने ध्यान दिया है कि वह एक फर्क लाता है? क्योंकि आप जिस क्षण एक दीया जलाते हैं, सिर्फ लौ ही नहीं, बल्कि लौ के चारो ओर स्वाभाविक रूप से एक अलौकिक घेरा या आभामंडल बन जाता है।
जहां भी आभामंडल होगा, संवाद बेहतर होगा। क्या आप जीवन में कभी अलाव के आस-पास बैठे हैं? अगर हां, तो आपने देखा होगा कि अलाव के पास सुनाई गई कहानियों का लोगों पर बहुत अधिक असर होता है। क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है? प्राचीन समय के कहानी सुनाने वाले यह बात समझते थे। अलाव के पास सुनाई जाने वाली कहानियां हमेशा सबसे प्रभावशाली कहानियां होती हैं। वहां पर ग्रहणशीलता अपने चरम पर होती है।
इसलिए अगर आप कोई शुरुआत करना चहाते हैं, या एक खास माहौल बनाना चाहते हैं, तो दीया जलाया जाता है। इसके पीछे यह समझ है कि जब आप एक दीया जलाते हैं, तो रोशनी देने के अलावा, वह उस पूरे स्थान को एक अलग किस्म की ऊर्जा से भर देता है। तेल का दीया जलाने के कुछ खास प्रभाव होते हैं। दीया जलाने के लिए कुछ वनस्पति तेलों, खासकर तिल का तेल, अरंडी का तेल या घी इस्तेमाल करने पर, सकारात्मक ऊर्जा उत्तपन्न होती है। उसका अपना ऊर्जा क्षेत्र होता है।
अगर आप कोई शुरुआत करना चाहते हैं, या एक खास माहौल बनाना चाहते हैं, तो दीया जलाया जाता है। इसके पीछे यह समझ है कि जब आप एक दीया जलाते हैं, तो रोशनी देने के अलावा, वह उस पूरे स्थान को एक अलग किस्म की ऊर्जा से भर देता है।
अग्नि खुद कई रूपों में प्रकाश और जीवन का एक स्रोत है। प्रतीकात्मक रूप में हमने हमेशा से अग्नि को जीवन के स्रोत के रूप में देखा है। कई भाषाओं में आपके जीवन को ही अग्नि कहा गया है। आपके भीतर जीवन की अग्नि आपको सक्रिय रखती है। इस पृथ्वी पर जीवन का जो मूल कारण है- सूर्य, वह भी अग्नि का एक पिंड ही तो है। चाहे आप बिजली का बल्ब जलाएं, या किसी भी तरह के चूल्हे पर खाना पकाएं, या आपके कार का अंदरूनी इंजिन, सब कुछ आग ही तो है। इस दुनिया में जीवन को चलाने वाली हर चीज अग्नि है। इसलिए अग्नि को जीवन का स्रोत माना गया है। यह अपने आस-पास ऊर्जा का एक घेरा भी बनाता है और सबसे अधिक यह जरूरी माहौल बनाता है। इसलिए जब आप अपने दिन की शुरुआत से पहले एक दीया जलाते हैं, तो इसकी वजह यह होती है कि आप वही गुण अपने अंदर लाना चाहते हैं। यह एक प्रतीक है, आपकी अपनी आंतरिक प्रकृति का आह्वान करने का एक तरीका है।
लिंग भैरवी में अग्नि स्नान किया जाता है। निश्चित रूप से आप आग को अपने शरीर पर नहीं डाल सकते, आप बस एक खास तरीके से अपने शरीर के आभामंडल को स्पर्श कर सकते हैं। आपके आभामंडल में कुछ खास पैटर्न होता है। अगर उन जगहों पर अग्नि का स्पर्श कराएं, तो अचानक आप चमक और स्पष्टता महसूस करेंगे।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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