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Gopaldas Neeraj~गोपालदास नीरज

Gopaldas Neeraj~गोपालदास नीरज

Gopaldas Neeraj

Gopaldas Saxena 'Neeraj', (popularly known as Niraj or Neeraj), born in 1925 in Etawah, Uttar Pradesh, India,  is among the best-known poets and authors in Hindi literature. He is also a famous poet of Hindi Kavi Sammelan. He was born in the small village Ekdil of Etawah in Uttar Pradesh, India on 4 January 1924.  He wrote under the pen name "Neeraj". His style is considered easy to understand, but has also been compared with high quality Hindi literature. He was awarded Padma Bhushan in 2007. Recently he recited some of his works at North India's premier annual cultural festival, Spoculit 2012.

Besides writing, he earned his living teaching in a college and was a Professor of Hindi Literature in Dharma Samaj College, Aligarh.  Several of his poems and songs have been used in Hindi movies and are considered famous. He wrote songs for several Hindi Movies and attained a unique position as a songwriter who wrote with equal facility in both pure Hindi as well as Urdu as opposed to Hindi-Urdu mix, which is increasingly becoming more common. But as per the needs and requirements of the Hindi Film Industry, the majority of his songs are nonetheless, in mixed but chaste Hindi-Urdu languages.

In the television interview, Gopaldas Neeraj called himself an unlucky poet which led to his stopping himself from writing film songs and confining himself to just writing and getting his poems published. The reason for this mentioned by him was that at least two or three prominent Music Directors of the Hindi Film Industry for whom he wrote very successful and popular songs, had expired. He mentioned the death of Jaikishan of the Music Duo Shankar-Jaikishan as well as of S.D.Burman or Sachin Dev Burman, for both of whom he had written highly popular film songs. The deaths of these Music Directors when they as well as Gopaldas Neeraj were at the peak of their popularity, left him very depressed and he made a decision to quit the film industry.

His publications are first choice of poetry readers. He has so many collections i.e. "Neeraj ki Paati", "Baadlon se Salaam Letaa Hoon" and "Geet jo Gaaye Nahin" etc.

As of 2012, Neeraj was the chancellor of Mangalayatan University, Aligarh, Uttar Pradesh.

गोपालदास नीरज

गोपालदास नीरज (अंग्रेजी: Gopaldas Neeraj, जन्म: 4 जनवरी 1925 ,ग्राम: पुरावली, जिला इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत), हिन्दी साहित्य के लिये कॉलेज में अध्यापन से लेकर कवि सम्मेलन के मंचों पर एक अलग ही अन्दाज़ में काव्य वाचन और फ़िल्मों में गीत लेखन के लिये जाने जाते हैं। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।

नीरज जी से हिन्दी संसार अच्छी तरह परिचित है किन्तु फिर भी उनका काव्यात्मक व्यक्तित्व आज सबसे अधिक विवादास्पद है। जन समाज की दृष्टि में वह मानव प्रेम के अनन्यतम गायक हैं। भदन्त आनन्द कौशल्यायन के शब्दों में उनमें हिन्दी का अश्वघोष बनने की क्षमता है। रामधारी सिंह 'दिनकर' के अनुसार वे हिन्दी की वीणा हैं। अन्य भाषा भाषियों के विचार में वे "सन्त कवि" हैं और कुछ आलोचक उन्हें "निराश मृत्युवादी" मानते हैं। वर्तमान समय में सर्वाधिक लोकप्रिय और लाड़ले कवि हैं जिन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी काव्यानुभूति तथा सरल भाषा द्वारा हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया और हरिवंश राय बच्चन के बाद नयी पीढ़ी को सर्वाधिक प्रभावित किया। आज अनेक गीतकारों के कण्ठ में उन्हीं की अनुगूँज सुनायी देती है।

आजकल नीरजजी उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। मुलायम सिंह यादव की संस्तुति पर उन्हें इस पद पर नामित कर कैबिनेट मन्त्री की सुविधाएँ प्रदान की गयी हैं।

संक्षिप्त जीवनी

गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है, में इटावा जिले के पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।

मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस  करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।

किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका जी बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये। तब से आज तक वहीं रहकर स्वतन्त्र रूप से मुक्ताकाशी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आज अट्ठासी वर्ष की आयु में भी वे देश विदेश के कवि-सम्मेलनों में उसी ठसक के साथ शरीक होते हैं। बीड़ी, शराब और शायरी उनके जीवन की अभिन्न सहचरी बन चुकी हैं।

अपने वारे में उनका यह शेर आज भी मुशायरों में फरमाइश के साथ सुना जाता है:
इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥

प्रमुख कविता संग्रह

हिन्दी साहित्यकार सन्दर्भ कोश  के अनुसार नीरज की कालक्रमानुसार प्रकाशित कृतियाँ इस प्रकार हैं:

    संघर्ष (1944)
    अन्तर्ध्वनि (1946)
    विभावरी (1948)
    प्राणगीत (1951)
    दर्द दिया है (1956)
    बादर बरस गयो (1957)
    मुक्तकी (1958)
    दो गीत (1958)
    नीरज की पाती (1958)
    गीत भी अगीत भी (1959)
    आसावरी (1963)
    नदी किनारे (1963)
    लहर पुकारे (1963)
    कारवाँ गुजर गया (1964)
    फिर दीप जलेगा (1970)
    तुम्हारे लिये (1972)
    नीरज की गीतिकाएँ (1987)

पुरस्कार एवं सम्मान

नीरज जी को अब तक कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है:

    विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार
    पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार
    यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
    पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार

फिल्म फेयर पुरस्कार

नीरज जी को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार यह पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिखे गये पुररकृत गीत हैं-

    1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली)
    1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)
    1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)


 

 
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"life saver poyem "
Posted By:  karuna
 
 
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