संकटमोचक साईं बाबा

एक दिन संध्या के समय अचानक तूफान आया| आसमान काले बादलों से घिर गया, बिजली बड़े जोर-शोर से कड़क रही थी| वायु भी पूरी प्रचंडता के साथ बह रही थी और तभी मूसलाधार बारिश भी शुरू हो गयी| चारों तरफ पानी-ही-पानी हो गया| फसलें भीग गयीं| सुखी घास बह गयी| पालतू जानवर इधर-उधर भागने लगे| गांव वाले भी भयाक्रांत हो उठे| सब लोग मस्जिद में इकट्ठे हो गये और उन्होंने बचाव के लिए बाबा से प्रार्थना की|साईं बाबा के दिल में लोगों के प्रति दया आ गई| बाबा उठकर मस्जिद के बाहर आकर आसमान की ओर देखते हुए जोर-जोर से गरजने लगे| बाबा की आवाज चारों तरफ गूंज उठी| मस्जिद और मंदिर कांप उठे तथा लोगों ने कानों में अंगुलियां डाल लीं| वहां उपस्थित सभ ग्रामवासी बाबा का यह अनोखा स्वरूप देखते ही रह गये|

बस थोड़ी ही देर में वर्षा का जोर धीमा हो गया, हवा की गति भी थम-सी गयी| बादलों का कड़कना रुक गया और वे छंट गये तथा आसमान में तारों के साथ चाँद चमकने लगा| पशु-पक्षी अपने-अपने घरौंदों की ओर वापस लौटने लगे| सब लोग भी प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घर रवाना हुए|

बाबा अपने भक्तों से एक माँ की तरह प्यार करते थे| भक्त की पुकार सुनते ही बाबा न दौड़ हों - ऐसा कभी हुआ ही नहीं|

इसी तरह एक बार दोपहर के समय मस्जिद में प्रज्जवलित रहने वाली धुनी एकाएक भड़क उठी| उसकी लपटें इतनी बढ़ गयीं कि वे ऊपरी छत तक पहुंचने लगीं| लपटों की भयानकता को देखते हुए वहां उपस्थित भक्तों को ऐसा लगा, मानो यह आग मस्जिद को जलाकर राख कर देगी| सब फिक्रमंद थे कि क्या करना चाहिए ? पानी डालकर अग्नि को शांत कर देना चाहिए| पानी डालें तो डाले भी कैसे ? बाबा से पूछने की हिम्मत किसी में भी न हुई| बाबा तो अंतर्यामी थे| बड़ी खामोशी से सब देख रहे थे| फिर कुछ देर बाद भक्तों की बढ़ती हुई बेचैनी को देखते बाबा ने हाथ में अपना सटका उठाया और धूनी के पास वाले खम्बे पर जोरदार प्रहार करते हुए बोले - "शांत हो जाओ, नीचे उतरो|" हर प्रहार के साथ अग्नि की लपटें धीमी होती चली गयीं और कुछ देर बाद वे सामान्य दिनों की तरह जलने लगीं तथा इस तरह लोगों के मन का डर भी मिट गया|

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