सुन्दरकाण्ड - सुन्दरकाण्ड
भाग - 25

दो0- कपि कें ममता पूँछपर सबहि कहउँ समुझाइ ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ । 24 ।।

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि । तब  स निज  नाथहि लइ आइहि ।।
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई । देखउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई ।
बचन सुनत कपि मन मुसुकाना । भइ सहाय सारद मैं जाना ।।
जातुधान सुनि रावन बचना।। लागे  रचैं  मूढ़ सोइ रचना ।।
रहा न नगर बसन घृत तेला । बाढ़ी  पूँछ कीन्ह कपि खेला ।।
कौतुक कहँ आए पुरबासी । मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी ।।

बाजहिं ढोल देहिं सब तारी । नगर फेरि  पुनि पूँछ प्रजारी ।
पावक जरत देखि हनुमंता । भयउ परम लघु रूप तुरंता ।।
निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं । भई सभीत निसाचर नारीं ।

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