सुन्दरकाण्ड - सुन्दरकाण्ड
भाग - 31

दो0- नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ।। 30 ।।

चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही । रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही ।।
नाथ जुगल लोचन भरि बारी । बचन कहे कछु जनककुमारी ।।
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना । दीन बंधु प्रनतारति हरना ।।
मन क्रम बचन चरन अनुरागी । केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी ।।

अवगुन एक ओर मैं माना । बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना ।।
नाथ सो नयहन्हि  को अपराधा । निसरत प्रान करहिं ह ि बाध ।।
बिरह अगिनि तनु तूल समीरा । स्वास जरइ छन माहिं सरीरा ।।
नयन स्त्रवहिं जलु निज हित लागी । जरैं न पाव देह बिरहागी ।।
सीता कैं अति बिपति बिसाला । बिनहिं कहें भलि दीनदयाला ।।

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