सुन्दरकाण्ड - सुन्दरकाण्ड
भाग - 40

दो0- बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस ।
परिहरि मान मोह मद भसजहु कोसलाधीस ।। 39  ।।
मुनि पुलस्ति निज सिष्य  सन कहि प ई यह बात ।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरू तात ।। 39 ।।

माल्यवंत अति सचिव सयाना । तासु बचन सुनि अति सुख माना ।।
तात अनुज तव नीति बिभूषन । सो उर धरहु जो कहत बिभीषन ।।
रिपु उतकरष कहत स दोऊ । दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ ।।
माल्यवंत गृह गयउ बहोरी । कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी ।।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं । नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।।
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना । जहाँ कुमति तहँ  बिपति निदाना ।।
तव उर कुमति बसी बिपरीता । हित अनहित मानहु रिपु प्रीता ।।
कालराति निसिचर कुल केरी । तेहि सीता पर प्रीति घनेरी ।।

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