सुन्दरकाण्ड - सुन्दरकाण्ड
भाग - 8

दो0- अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर ।
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ।। 7 ।।

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी । फ़िरहिं ते काहे न होहिं दुखारी ।।
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा । पावा अनिर्बाच्य  बिश्रामा ।।
पुनि सब कथा बिभीषन कही । जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही ।।
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता । देखी चहउँ जानकी माता ।।
जुगुति बिभीषन सकल सुनाई । चलेउ पवनसुत बिदा कराई ।।
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ । बन असोक सीता रह जहवाँ ।।
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा । बै ेहिं बीति जात निसि जामा ।।
कृस तनु सीस जटा एक बेनी । जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी ।।

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