धर्म में दिखावा न हो - महावीर स्वामी-
जैन धर्म किसी एक का नहीं है। जो इसे मानता है यह उसी का है। धर्म में दिखावा बिलकुल नहीं होना चाहिए, क्योंकि दिखावे में दुख होता है। महावीर स्वामी ने भी दुनिया को यही संदेश दिया था।
* महावीर स्वामी के संदेश, सिद्धांतों और विचारों पर चलकर ही शांति को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने हमेशा आपसी एकता और प्रेम की राह पर चलकर जियो और जीने दो तथा अहिंसा के भाव को सर्वोपरि रखा। धर्म का बंटवारा नहीं होना चाहिए। धर्मस्थलों और आश्रमों की संख्या बढ़ाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है गरीबों और दीन-दुखियों की सेवा करना।
वर्तमान समय में आतंकवाद, नस्लवाद, जातिवाद, आपसी झगड़ों से संपूर्ण संसार ग्रसित है। चारों ओर हाहाकार मचा हो, प्राणीमात्र सुख-शांति, आनंद के लिए तरस रहा हो, ऐसे नाजुक क्षणों में सिर्फ महावीर स्वामी की अहिंसा ही विश्व शांति के लिए प्रासंगिक हो सकती है।
भगवान महावीर की वाणी को यदि हम जन-जन की वाणी बना दें एवं हमारा चिंतन व चेतना जाग्रत कर प्रेम, भाईचारा, विश्वास अर्जित कर सकें, तो भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित कर हम पुनः विश्व गुरु का स्थान प्राप्त कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला से महात्मा गांधी तक ने भगवान महावीर की अहिंसा को अपनाया था।
* भगवान महावीर स्वामी के बताए अहिंसा के रास्ते पर चलने से ही मानव जीवन का कल्याण संभव है। अगर मानव जीवन सार्थक करना है तो भगवान के अहिंसा रूपी शस्त्र को धारण करना होगा, जयंती मनाने से फल नहीं मिलने वाला, जब तक संसारी प्राणी इसका अपने जीवन में पालन नहीं करेंगे।
* वर्तमान में चारों ओर अशांति की ज्वाला जीवन को प्रभावित कर रही है। ऐसे में महावीर का संदेश अपनाने से ही सुख और शांति की अनुभूति होगी। भगवान के जन्मदिन पर संकल्प लें कि अपने मन, वचन, कर्म से किसी को दुख नहीं पहुंचाएंगे, तभी हम सुखी रह सकेंगे। धर्म दिखावे के लिए नहीं बल्कि आत्मा की शुद्धि के लिए है।
* व्यक्ति पैसा कमाने के बाद भी आज अस्वस्थ और अशांत है। चारों ओर तनाव, चिंता और अशांति दिखाई देती है। ऐसे में धर्म विपरीत हालातों से उबार कर शांति देकर सही मार्ग पर ले जाता है। दुख इस बात का है कि आज धर्म के नाम पर दुकानदारी बढ़ चुकी है।
* धर्म को व्यवसाय और उद्योग का रूप दिया जा रहा है। हम इसके खिलाफ हैं। दरअसल धर्म जीवन जीने की वह विशुद्ध प्रक्रिया है जहां सुख और आत्मिक शांति का अनुभव होता है। यह मूलतः प्रभु की ओर बढ़ने का भाव है। आज के दौर में भगवान महावीर के सिद्धांतों को आत्मसात करने की जरूरत है।
देश और प्रदेश में कई शहरों में धर्मस्थलों के नजदीक ही मांस, अंडे, शराब आदि की दुकानें नजर आती हैं। यह कृत्य किसी भी धर्म को मानने वाले की भावना के साथ खिलवाड़ है। इस मामले में सरकार को कड़े कदम उ ाने चाहिए, क्योंकि जैसा हमारा आहार होगा वैसे ही विचार मन में आएंगे।
* भगवान महावीर ने अपना पूरा जीवन परमार्थ के लिए लगा दिया। हमें भी उसी तरह विश्व कल्याण की दिशा में काम करना चाहिए। जैन समाज में एकता की बहुत जरूरत है। दिगंबर-श्वेतांबर का अंतर समाप्त कर समाजजनों को एक मंच पर ही आना चाहिए।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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