तुलसीदासजी ने यह नहीं कहा संकट से हनुमान बचावें, बचाने और छुड़ाने में बहुत बड़ा अन्तर है, बचाने में तो व्यक्ति दूर से बचा सकता है, जैसे कोई पुलिस केस हो जाये, आप किसी बड़े व्यक्ति के पास जाते है और बताते है, कि ऐसा-ऐसा हो गया है।
वह कहता है ठीक है हम कह देते है या फोन कर देते है, अब आवश्यक तो नही कि फोन पर रिस्पॉन्स पूरा दे ही दिया जाय? टाल-मटोल भी हो सकती है तो बचाया दूर से जा सकता है लेकिन छुड़ाया तो पास जाकर ही, छुड़ाना माने किसी के हाथ मे से छीन लाना, जब भी भक्त पर संकट आता है तब हनुमानजी दूर से नही बचाते बल्कि पास आकर छुड़ाते हैं।
एक सुपंथ नाम का धर्मात्मा राजा था, एक बार अयोध्या में संत सम्मेलन होने जा रहा था तो संत सम्मेलन में संतो के दर्शन करने सुपंथ भी जा रहे थे, रास्ते में नारदजी मिल गये, प्रणाम किया, बोले कहाँ जा रहे हो? कहा संत सम्मेलन में संतो के दर्शन करने जा रहा हूँ, नारदजी बोले जाकर सभी संतो को प्रणाम करना लेकिन वहाँ ब्रह्मऋषि विश्वामित्र होंगे वे क्षत्रिय है, क्षत्रियों को प्रणाम मत करना, ऐसा नारदजी ने भड़काया।
हनुमानजी की महिमा और भगवान् के नाम का प्रभाव भी शायद नारदजी प्रकट करना चाहते होंगे, सुपंथ बोले जैसी आपकी आज्ञा, सुपंथ गयें, सभी को प्रणाम किया लेकिन विश्वामित्रजी को नही किया तो क्षत्रिय का यह अहंकारी स्वभाव होता है, विश्वामित्रजी बोले इसकी यह हिम्मत, भरी सभा में मुझे प्रणाम नहीं किया, वैसे भूल हो जाये तो कोई बात नही, जान-बूझकर न किया जाये तो एक्शन दिखाई दे जाता है।
विश्वामित्र जी को क्रोध आ गया और दौड़कर भगवान् के पास पहुँच गये कि राघव तुम्हारे राज्य में इतना बड़ा अन्याय, गुरूओं और संतो का इतना बड़ा अपमान? भगवान बोले गुरूदेव क्या हुआ? बोले, उस राजा ने मुझे प्रणाम नही किया उसको दण्ड मिलना चाहिये, भगवान् ने कहा ऐसी बात है तो कल मृत्युदंड घोषित किया जाता है।
जब सुपंथ को पता लगा कि मृत्युदण्ड घोषित हो गया है और वह भी रामजी ने प्रतिज्ञा की है कि मैं गुरूदेव के चरणों की सौगंध खाकर कहता हूँ, कि कल सूर्यास्त तक उसके प्राणों का अंत हो जायेगा, इधर लक्ष्मणजी ने बड़े रोष में प्रभु को देखा और पूछा प्रभु क्या बात है? भगवान बोले आज एक अपराध हो रहा है, कैसे? बोले कैवल्य देश के राजा सुपंथ ने गुरूदेव का अपमान किया है।
और मैंने प्रतिज्ञा की है कि कल उनका वध करूंगा, लक्ष्मणजी ने कहा महराज कल आपका कभी नही आता, आपने सुग्रीव को भी बोला था कल मैं इसका वध करूँगा, लगता है कि दाल में कुछ काला होने वाला है, बोले नही, यह मेरी प्रतिज्ञा है, उथर सुपंथ रोने लगा तो नारदजी प्रकट हो गये, बोले क्या हुआ?
बोले भगवान् ने हमारे वध की प्रतिज्ञा की है, अच्छा-अच्छा भगवान् के हाथ से वध होगा यह तो सौभाग्य है, मौत तो अवश्यंभावी होती है, मृत्यु को तो टाला नही जा सकता, सुपंथ बोले कमाल है आप ने ही तो भड़काया था, आप ही अब कह रहे हैं, नारदजी ने कहा एक रास्ता मैं तुमको बता सकता हूँ, भगवान् के बीच में तो मैं नही आऊँगा, क्या रास्ता है? बोले तुम अंजनी माँ के पास जाकर रोओ।
केवल अंजना माँ हनुमानजी के द्वारा तुम्हारी रक्षा करा सकती है, इतना बड़ा संकट है और दूसरा कोई बचा नही पायेगा, सुपंथ माता अंजनी जी के घर पहुँचे और अंजनी माँ के घर पछाड़ खाकर हा-हा करके रोयें, माँ तो माँ हैं, बोली क्या बात है? बेटे क्यों रो रहे हो? माँ रक्षा करो, माँ रक्षा करों, किससे रक्षा करनी है? बोले मैरी रक्षा करो, माँ बोली मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि तुझे कोई नही मार सकता, मैं तेरी रक्षा करूँगी, बता तो सही।
सुपंथ ने पूरी घटना बताई लेकिन माँ तो प्रतिज्ञा कर चुकी थी, बोली अच्छा कोई बात नही तुम अन्दर विश्राम करो, हनुमानजी आयें, माँ को प्रणाम किया, माँ को थोड़ा चिन्तातुर देखा तो पूछा माँ क्या बात है? माँ ने कहा मैं एक प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ शरणागत की रक्षा की, और तुमको उसकी रक्षा करनी है, हनुमानजी ने कहा माँ कैसी बात करती हो? आपका आदेश हो गया तो रक्षा उसकी अपने आप हो जायेगी।
माता बोली पहले प्रतिज्ञा करो, बोले मैं भगवान श्रीरामजी के चरणों की सौगंध खाकर कहता हूँ, कि जो आपकी शरण में आया है उसकी रक्षा होगी, माँ ने उस राजा को बुला लिया, बोली यह हैं, पूछा कौन मारने वाला है? बोले भगवान् रामजी ने प्रतिज्ञा की है, हनुमानजी ने कहा यार तूने तो मुझे ही संकट में फँसा दिया, दुनिया तो गाती थी संकट से हनुमान छुड़ायें, आज तूने हनुमान को ही संकट में डाल दिया।
खैर, मैं माँ से प्रतिज्ञा कर चुका हूँ, देखो जैसा मैं कहूँगा वैसा ही करना घबराना नहीं, उधर भगवान् ने धनुष-बाण उठाये और चले मारने के लिये, हनुमानजी दूसरे रास्ते से जाने लगे तो भगवान् ने हनुमानजी से बोले कहाँ जा रहे हो, तो हनुमानजी ने कहा प्रभु आप कहाँ जा रहे हो, बोले मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ, हनुमानजी ने कहा मैं भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ।
भगवान् ने कहा तुम्हारी क्या प्रतिज्ञा है, हनुमानजी ने कहा पहले आप बताइयें, आपने क्या प्रतिज्ञा की है? भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा बतायीं, हनुमानजी ने भी कहा कि मैं उसी की रक्षा करने के लिये जा रहा हूँ, भगवान् ने कहा मैंने अपने गुरूदेव के चरणों की सौगंध खाई है कि मैं उसका वध करूँगा, हनुमानजी ने कहा मैंने अपने भगवान के चरणों की सौगंध खाई है कि मैं उसकी रक्षा करूँगा।
यह लीला लक्ष्मणजी देख रहे है और मुस्कुरा रहे है, यह क्या लीला हो रही हैं? जैसे ही भगवान् का आगमन देखा तो सुपंथ रोने लगा, हनुमानजी ने कहा रोइये मत, मेरे पीछे खड़े हो जाओ, संकट के समय हनुमानजी आते हैं, भगवान् ने अभिमंत्रित बाण छोड़ा, हनुमानजी दोनों हाथ उठाकर श्री राम जय राम जय जय राम हनुमानजी भगवान् के नाम का कीर्तन करें और बाण विफल होकर वापस लौट जायें।
जब सारे बाण निष्फल हो गयें तो भगवान् ने ब्रह्मास्त्र निकाला, जैसे ही ब्रह्मास्त्र छोड़ा सीधा हनुमानजी की छाती में लगा लेकिन परिणाम क्या हुआ? प्रभु मूर्छित होकर गिर पड़े, बाण लगा हनुमानजी को और मूर्छित हुये भगवान् , अब तो बड़ी घबराहट हो गयीं, हनुमानजी दौड़े, मेरे प्रभु मूर्छित हो गये, क्यों मूर्छित हो गये? क्योंकि जासु ह्रदय अगार बसहिं राम सर चाप धर हनुमानजी के ह्रदय में भगवान् बैठे है तो बाण तो भगवान् को ही न लगेगा।
बाकी सब घबरा गयें, यह क्या हो गया? हनुमानजी ने चरणों में प्रणाम किया और सुपंथ को बिल्कुल अपनी गोद में ले आये हनुमानजी ने उसको भगवान् के चरणों में बिठा दिया, प्रभु तो मूर्छित हैं, हनुमानजी बहुत रो-रोकर कीर्तन कर रहे थे कि प्रभु की मूर्छा दूर हो जायें, भगवान् की मूर्छा धीरे-धीरे दूर होती चली गयी और प्यार में, स्नेह में चूँकि भगवान् को अनुभव हो गया था कि बाण मेरे हनुमान के ह्रदय में लगा तो उसे चोट लगी होगी, इसलिये भगवान् इस पीड़ा के कारण मूर्छित हो गये।
जब हनुमानजी कीर्तन करने लगे तो रामजी हनुमानजी के सिर पर हाथ फिराने लगे, धीरे से हनुमानजी पीछे सरक गये और भगवान् का हाथ सुपंथ के सिर पर दे दिया, दोनो हाथों से भगवान् हनुमानजी का सिर समझकर सुपंथ का सिर सहलाने लगे, प्रभु ने जैसे नेत्र खोले तो देखा सुपंथ भगवान् के चरणों में था, मुस्करा दियें भगवान् और बोले हनुमान तुम जिसको बचाना चाहोगे उसको कौन मार सकता है?
भाई-बहनों, हनुमानजी तो अजर-अमर हैं, चारों युगों में हैं सम्पूर्ण संकट जहाँ छूट जाते हैं शोक, मोह, भय वह है भगवान् के नाम का स्मरण, रामजी के साथ में हनुमानजी रहते हैं, अगर संकट से न छूटे तो हनुमानजी छुड़ा देंगे।Upcoming Events | |
» | Saphala Ekadashi 2019 Date, 22 December 2019, Sunday |
» | English New Year 2020, 1 January 2020, Wednesday |
» | Pausha Putrada Ekadashi 2020 Date~पुत्रदा एकादशी 2020, 6 January 2020, Monday |
» | Paush Purnima 2020~पौष पूर्णिमा 2020, 10 January 2020, Friday |
» | Shakambari Jayanti 2020 Date~शाकंभरी जयन्ती, 10 January 2020, Friday |
» | Sakat Chauth Fast 2020 date~सकट चौथ, 13 January 2020, Monday |
More |
![]() |
Feng Shui Fish |
![]() |
Lasting Romance, Wealth And A life Full Of Beauty and Luxury |
![]() |
Facing and Sitting directions |
View all |
![]() |
कुछ काम की बाते जरूर अपनाये |
![]() |
सम्मोहन शक्तिवर्द्धक उपाय |
![]() |
श्री गणेश को प्रसन्न करने हेतु विशेष उपाय |
![]() |
पितरों को खुश करने के लिये उपाय |
![]() |
नजर उतारने के उपाय |
View all Remedies... |
![]() Ganesha Prashnawali |
![]() Ma Durga Prashnawali |
![]() Ram Prashnawali |
![]() Bhairav Prashnawali |
![]() Hanuman Prashnawali |
![]() SaiBaba Prashnawali |
|
|
Dream Analysis | |