सेठ धनीराम नगर के बड़े व्यक्ति थे। जिनके दो बेटे थे दोनों अब बड़े हो चुके थे और काम धंधे के साथ ही घर परिवार की जिम्मेदारियां भी भली प्रकार संभाल रहे थे। इसलिए सेठ धनीराम ने सोचा कि अब सम्पति और ज़मीन का बँटवारा दोनों में करके अपने कर्तव्यों से मुक्त हो जाना सही रहेगा। लेकिन बंटवारे के समय एक चार बेड रूम के घर को लेकर विवाद चल रहा था। यह देखकर सेठ धनीराम जी बहुत जोर से मुस्कराए। उनको यूँ मुस्कुराता हुआ देखकर दोनों बेटे अपना विवाद को भूल गये, और पिताजी से अचानक यूँ मुस्कुराने का कारण जानना चाहा। इस पर सेठ धनीराम जी बोले -- जमीन के इस छोटे से भाग के लिये क्यों इतना झगड़ा कर रहे हो। छोड़ो इसको आओ मेरे साथ में चलो मै तुम्हे अपनी एक अनमोल सम्पति दिखता हूँ।
सेठ धनीराम जी अपने दोनो बेटे सुरेश और अरुण के साथ में उस संपत्ति को देखने के लिए रवाना हुये। मगर सेठ धनीराम ने कहा देखो यदि तुम आपस मे झगडे तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और रास्ते के बीच से ही लौटकर वापस आ जाऊँगा। अब उनके दोनो बेटो ने उस बड़ी संपत्ति को देखने के लिए आपस में समझौता कर लिया कि भले ही कुछ भी हो जाये पर हम लोग सफर में लड़ेंगे नही। उस स्थान पर जाने के लिये तीनो ने एक बस में चढ़े मगर सीट केवल दो ही उपलब्ध थी। लेकिन वो तीन लोग थे लेकिन समझौते के मुताबिक दोनों ने बिना झगडे पिता जी के साथ में सफर पूरा किया। कुछ देर के लिए सुरेश सीट पर बैठ जाता और कुछ देर के लिए अरुण बैठे जाता था। जबकि यह सफर तय करने में उन लोगों को करीबन दस घण्टे का लम्बा समय लगा।
सेठ धनीराम जी अब दोनो बेटो को लेकर के एक बहुत बड़े आलिशान महल पर पहुंच गये मगर यह क्या ये महल तो चारो ओर से सुनसान था।
सेठ धनीराम जी ने जब देखा कि हवेली में जगह जगह पर कबूतरों ने अपने घोंसले बना रखे है, तो ये दृश्य देखकर सेठ धनीराम जी वहीं पर बैठकर रोने लगे।
पिता को यूँ अचानक रोते देखकर सुरेश और अरुण ने पूछा कि हुआ पिताजी आप क्यों रो रहे है? रोते हुये सेठ धनीराम ने कहा जरा गौर से इस घर को देखो, और याद करो अपना वो सूंदर बचपन जो तुमने यहाँ पर बिताया था। तुम्हे याद होगा बेटा इसी महल के लिये कभी मैंने अपने बड़े भाई से बहुत झगड़ा किया था, हालाँकि ये महल तो मुझे मिल गया था मगर मैंने अपने उस भाई को सदा के लिये खो दिया। क्योंकि वो दूसरे शहर में जाकर बस गया और फिर समय हमेशा की तरह बदला हम लोगो को भी एक दिन ये महल छोड़ करके जाना पड़ गया। अच्छा बेटा तुम लोग एक बात बताओ कि जिस सीट पर अभी हम लोग बैठकर आये थे क्या वो बस की सीट हम लोगो मिल गई है? और अगर मिल भी जाती तो क्या हमेशा के लिये वो सीट हमारी हो सकती थी? मतलब कि उस सीट पर हम लोगो के अलावा और कोई भी उस सीट पर फिर कोई भी न बैठ सकता।
धनीराम जी के दोनो बेटो सुरेश व अरुण ने एक साथ कहा कि पिता जी ऐसे कैसे हो सकता है, बस का सफर तो चलता ही रहता है। उसी सीट पर यात्री बदलते रहते है। पहले हम लोग बैठे थे, फिर कोई और बैठ गया होगा और पता नही, शायद कल को कोई और बैठेगा। वैसे भी उस सीट में ऐसा रखा ही क्या है, थोड़ी सी देर के लिये ही तो हमारी थी। ये बात सुनकर उनके पिता जी सेठ धनीराम जी पहले थोड़ा सा मुस्कुराये और फिर आँखों में आंसू भर करके बोले, देखो बेटा यही बात मैं भी तुम लोगो को समझाना चाह रहा हूँ, कि जो अभी थोड़ी देर के लिये तुम्हारा है, तुमसे पहले किसी और का था, अब कुछ देर के लिये तुम्हारा हो जाएगा और थोड़ी देर बाद फिर किसी और का हो जायेगा।
लेकिन बस बेटा मेरी एक बात याद रखना कि इस थोड़ी सी देर के लिये कही तुम अपने अनमोल रिश्तों को न खो देना। यदि जीवन में कभी पैसों का लालच आये तो एक बार आकर इस आलिशान महल की हालत को देख लेना कि रिश्तों के बिखर जाने पर बड़े बड़े महलों में भी एक दिन पंछी अपना बसेरा कर लेते है।
तथा साथ ही याद कर लेना बस की उस सीट को जिसकी सवारियां हमेशा बदलती रहती है। उस सीट के लिए जीवन में कभी अनमोल रिश्तों को न खो देना।
जिस प्रकार से बस के सफर में समझदारी से तालमेल बिठा कर, धैर्य रखकर अनमोल खजाने तक पहुंचे, वैसे ही जीवन की इस सूंदर यात्रा मे भी थोड़ा तालमेल बिठाते रहोगे तो अंत में अनमोल खजाने तक पहुँच जाओगे। अब सेठ धनीराम के दोनो बेटे अपने पिता जी की ये सीख भली प्रकार समझ गए थे और अपने झगड़े पर पछतावा करते हुए दोनों पिता के पेरो में गिरकर रोने लगे थे।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
Vegetarian Recipes | |
» | Mitha Khaja |
» | Vegetable Idli |
» | ALOO SABZI RECIPE |
» | Jamaican Vegetable Patties |
» | Motichoor Ladoo (Bundi Ladoo) |
» | Callaloo with Hot Pepper Vinegar |
» | SHAHI PANEER RECIPE |
» | PINDI CHANA RECIPE |
More |
Upcoming Events | |
» | Mahavir Jayanti, 21 April 2024, Sunday |
» | Hanuman Janmotsav, 23 April 2024, Tuesday |
» | Akshaya Tritiya, 10 May 2024, Friday |
» | Parshuram Jayanti, 10 May 2024, Friday |
» | Buddha Purnima, 23 May 2024, Thursday |
» | Narada Jayanti, 24 May 2024, Friday |
More |
Feng Shui tips for your business and office | |
Where and How to Hang Wind chime | |
Feng Shui tips for home | |
View all |
Ganesha Prashnawali |
Ma Durga Prashnawali |
Ram Prashnawali |
Bhairav Prashnawali |
Hanuman Prashnawali |
SaiBaba Prashnawali |
|
|
Dream Analysis | |