शचीन्द्र नाथ उपाध्याय जी के सिद्धांत के अनुसार — “शून्य एक अनंत आकाश है जो प्रत्ययः परश्च न्यास से पूर्ववर्ती को दस गुणित कर देता है।”
दशमलव−पद्धति में शून्य ही नहीं किन्तु कोई भी संख्या अपने पूर्ववर्ती को दशगुणित करती है, अतः आपका वक्तव्य भ्रामक और एकपक्षीय है ।
अष्टक−पद्धति अथवा ऑक्टल कांसेप्ट में कोई भी अंक अपने पूर्ववर्ती को अष्टगुणित करती है। षोडश−पद्धति अथवा हेक्साडेसिमल कॉसेप्ट में कोई भी अंक अपने पूर्ववर्ती को षोडशगुणित करती है। बायनरी कांसेप्ट में कोई भी अंक अपने पूर्ववर्ती को द्विगुणित करती है। अतः पूर्ववर्ती को गुणित करना जीरो का ज्ञान नहीं वरन गणन पद्धति का ज्ञान है। “ज्ञान” उस विशेषता को कहते हैं, जो कम या अधिक हो सके गुणित हो सके। ब्रह्म को निर्गुण कहा जाता हैं जिसका यह अर्थ नहीं है कि ब्रह्म में कोई लक्षण ही नहीं है, अपितु इसका मतलब है कि ब्रह्म के लक्षणों में कमी या विकास की सम्भावना नहीं, ब्रह्म के समस्त लक्षण हमेशा पूर्ण ही रहते हैं।
दशमलव−पद्धति में पूर्ववर्ती संख्या सदैव दशगुणित ही होती है उससे कभी भी कम या ज्यादा नहीं होती है। पूर्ववर्ती अंक का यह लक्षण हमेशा अपरिवर्तनीय ही रहता है, अतः इस लक्षण को “गुण” कहना बिलकुल गलत है। जीरो की विशेषता तो यह है कि किसी भी अंक से गुना करने पर जीरो उसे भी जीरो बना देता है। गुना करने का ही विपरीत अवयव है भाग जीरो से विभाग किसी भी अंक को अनन्त बना देता है। अतः अनन्त भी जीरो का ही विशेषता का एक परिणाम है। अन्य कोई अंक कभी भी अनन्त नहीं बन सकता।
जीरो ही ऐसी और भी बहुत सी प्रमुख विशेषताएँ हैं। जीरो के विशेषताओं की संख्या भी अनन्त है, जिनकी आधुनिक उच्च गणित भी पूरी खोज नहीं कर सका है। लेकिन इनमें से कोई भी विशेषता जीरो का “गुण” नहीं है क्योंकि वे उसके लक्षण घट या बढ़ नहीं सकते। अतः जीरो निर्गुण है, गुणातीत है, और सामान्य गुणों से पृथक दिखने के लिये कहा जा सकता है कि ब्रह्म की तरह ही शून्य में भी सामान्य नहीं अपितु दिव्य “गुण” होते हैं ।
यदि कोई जीव अपनी इच्छाओं को जीरो बना ले तो आपके आत्मा का प्रभाव अनन्त हो जायेगा। वहीं स्थिति साम्य की स्थिति कहलाती है अथार्थ सम आधि है, जिससे अलग कोई भी स्थिति व्याधि है। सृष्टि के तीनों गुणों में भी संतुलन हो जाय तो वह गुप्त हो जाती है और जीवात्मा को मोक्ष मिल जाता है। अव्यक्त अर्थात् जीरो अतः साम्यावस्था ही शून्यता है। वैषम्यता सगुण अवस्था का प्रतीक है। भोग और इच्छाओं के गुणों के अनुरूप वैषम्यता की स्थिति होती है। जिस प्रकार रंग−त्रिकोण में लाल, हरा और नीला (RGB) साम्य होने पर श्वेत प्रकाश उत्पन्न करते है तथा दिखने वाली वस्तु काला अर्थात् रंग शून्य हो जाता है।
व्यक्ति भी जब अपनी क्षमता को जीरो कर दे तो अपने यथार्त स्वरूप को प्राप्त करके अनन्त और गुप्त हो जाता है। वही एक मुक्त व्यक्ति जब कुछ “चाहे” तो उसकी वह इच्छा ही उसको मनुष्य के रूप में सबोध गम्य बना देता है, जैसे कि इन्द्र, मनु, वसिष्ठ, अत्रि, कश्यप, आदि। कुछ भी न चाहे तो अव्यक्त ब्रह्मस्वरूप जाग्रत रहता है। सभी संख्याएं जीरो से ही सृजित होती हैं। जीरो का गणित अनन्त है।
जिसका दर्शन हो जाए उसे संख्या कहा जाता हैं। जीरो कोई अंक नहीं है क्योंकि अव्यक्त है। यह अव्यक्त जीरो ही समस्त संख्याओं तथा समस्त गणित का स्रोत और आधार है।
एक उदाहरण —
काल की विमा में जीरो के समाकलन समीकरण से ही हर काल में मानवजाति की कुल जनसंख्या का गुण बनता है जिसके जरिये किसी भी काल में सही जनसंख्या की गणना की जा सकती है। यह प्राचीन “सांख्य” शास्त्र का एक उदाहरण है। वैदिक तन्त्र की यह परम्परा हमेशा अलिखित रही है, एवं वेद के सही प्रयोग द्वारा ही प्राप्त होती है।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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