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भगवान शिव और विष्णु के नीले रंग के पीछे कौन सी मान्यता है

 

पौराणिक कथाओं में हिन्दू देवी-देवताओं के अवतार के बारे में विवरण मिलता है, जिसमें उनके द्वारा धारण किए गए वस्त्रों, प्रतीकों और अलंंकारों के बारे में बताया गया है. जैसे भगवान शिव के बारे में उनके नीले कंठ से जुड़ी हुई समुद्र मंथन की एक कहानी मिलती है. उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण को बांसुरी क्यों प्रिय है इसका रहस्य भी पौराणिक कहानियों में बताया गया है.

नीले रंग का रहस्य

इसी प्रकार आपने भगवान विष्णु के ऐसे कई चित्र देखें होंगे, जिसमें उनका रंग नीला दिखाया गया है. बहुत कम लोग भगवान विष्णु के इस नीले रंग के रहस्य को जानते हैं. वास्तव में भगवान विष्णु का ये नीला रंग जीवन के प्रति हमें एक नजरिया भी देता है. जीवन के इस रहस्य को समझकर हम स्वयंं में ये गुण उतार सकते हैं.

भगवान विष्णु के नीले रंग का ये है अर्थ

नीला रंग आकाश का प्रतीक है यानि जिस प्रकार आकाश अपरिभाषित है, उसी प्रकार भगवान विष्णु भी अपरिभाषित हैंं. आकाश की तरह ही वो बहुत विशाल हैं. जीवन में नीला रंग हर परिस्थिति में विशाल होने का सूचक है. नीला रंग समुद्र और जल का भी होता है. भगवान विष्णु समुद्र में देवी लक्ष्मी के साथ निवास करते हैं. इस कारण भी उनका नीला रंग है.

नीले रंग से जीवन के प्रति ये भी नजरिया मिलता है कि जिस तरह पानी हर एक चीज को स्वयंं में घोलकर भी अपना अस्तित्व जीवित रखता है, उसी प्रकार हमें भी जीवन के प्रत्येक रंग या परिस्थिति को खुद में समाहित करके सामंजस्य बिठाकर चलना चाहिए.पौराणिक कहानियों के अनुसार ये भी माना जाता है कि समुद्र के भीतर जलचरों के साथ निवास करने के कारण भी भगवान विष्णु ने समुद्र का नीला रंग स्वयंं में धारण कर लिया था|

भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा जाता है। भगवान शिव को सृष्टि का पालनहार भी कहा जाता है। उनके गले में नाग, हाथों में डमरू और त्रिशूल होते हैं। इन्हें कई नामों से जाना जाता है। उनमें से कुछ नाम हैं- महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र और नीलकंठ। इन सभी में नीलकंठ उनका एक प्रसिद्ध नाम है। आइए, आज हम यह जानते हैं कि भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अमृत मंथन हुआ था। यह मंथन दूध के सागर यानी क्षीरसागर में हुआ था। इस मंथन से लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष ये 14 रत्न निकले थे। इनमें से देवता अपने साथ अमृत ले जाने में सफल हुए थे। लेकिन मंथन से 14 रत्न में से विष भी निकला था। माना जाता है यह विष इतना खतरनाक था कि इसकी एक बूंद पूरे संसार को खत्म कर सकती थी। इस बात से परेशान सभी देवता और दानव हल ढूंढ़ने विष के घड़े को लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे।

भगवान शिव ने इसका हल निकाला और वह खुद विष का पूरा घड़ा पी गए। लेकिन भगवान शिव ने ये विष गले से नीचे नहीं उतारा। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इस विष को गले में ही रोक कर रखा। इसी वजह से उनका कंठ नीले रंग का हो गया, जिसके बाद उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

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Posted Comments
 
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।"
Posted By:  संतोष ठाकुर
 
"om namh shivay..."
Posted By:  krishna
 
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye"
Posted By:  vikaskrishnadas
 
"वास्तु टिप्स बताएँ ? "
Posted By:  VAKEEL TAMRE
 
""jai maa laxmiji""
Posted By:  Tribhuwan Agrasen
 
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है"
Posted By:  ओम प्रकाश तिवारी
 
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