सूर्य ग्रहण का उल्लेख हमारे प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है. प्राचीन काल में हमारे पूर्वज सूर्य ग्रहण काल की गणना करने में समर्थ थे. सूर्यग्रहण की घटना को सामान्यत: राजा और राज्य की कुशलता के पक्ष से शुभ नहीं माना जाता है. सूर्य ग्रहण से सता परिवर्तन की घटनाओं की जानकारी प्राचीन धार्मिक पुस्तकों में भी मिलती है.
एक प्रसिद्ध किवदन्ती के अनुसार, एक बार राहू ने सूर्य पर आक्रमण कर उसे अन्धकारमय कर दिया था, ऎसे में मनुष्य सूर्य को नहीं देख पायें, तथा घबरा गयें, इस स्थिति से निपटने के लिये महर्षि अत्री ने अपने अर्जित सिद्धियों व शक्तियों के प्रयोग से राहू नाम की छाया का नाश किया तथा सूर्य को फिर से प्रकाशवान किया. इस कथा के अन्तर्गत यह भी आता है कि देव इन्द्र ने अत्रि की सहायता से एक अन्य समय में राहू के प्रभाव से सूर्य की रक्षा की थी.
महाभारत के तथ्यों के अनुसार, जिस दिन पांडवों ने कौरवों के साथ जुए में अपना राजपाट हार दिया था, उस दिन सूर्यग्रहण था. इसका कारण ज्योतिष शास्त्र में ढूंढने का प्रयास करने पर पायेगें कि ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है.
सूर्य ग्रहण के दिन सूर्य का ग्रास होता है. यही कारण है कि जिस देश में एक समय वर्ष में तीन या तीन से अधिक सूर्यग्रहण होते है, वहां पर सता परिवर्तन और प्राकृ्तिक आपदाएं आने की संभावनाएं अधिक होती है.
इतिहास में ऐसी कई घटनाएं और उदहारण है जब सूर्यग्रहण के बाद बड़े परिवर्तन हुए।
महाभारत के ही एक अन्य अध्याय के अनुसार, जब महाभारत युद्ध में जिस दिन अर्जुन ने कौरवों के सेनापति जयद्रथ का वध किया था, उस दिन भी सूर्यग्रहण था. जिस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण की नगरी द्वारका जलमग्न हुई थी, उस दिन भी सूर्य ग्रहण था. तथा फिर से यह नगरी जब कृ्ष्ण के प्रपौत्र ने फिर से बसाई थी, उस दिन भी सूर्य ग्रहण होने के तथ्य सामने आते है.सूर्य ग्रहण के समय सूर्य का ध्यान - मनन करने से सूर्य की शक्तियों को ग्रहण किया जा सकता है. सूर्य आत्मविश्वास, पिता, एवं उर्जा शक्ति का कारक ग्रह है. सूर्य ग्रहण के दिन सूर्य मंत्र जाप, होम करने पर व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृ्द्धि होती है. सूर्य ग्रहण के ग्रास काल की अवधि में अपनी आन्तरीक शक्तियों को योग के द्वारा सरलता से जाग्रत किया जा सकता है.
ग्रहण का शाब्दिक अर्थ ही स्वीकार करना, आत्मसात करना या लेना है. स्वयं में ज्ञान का प्रकाश प्रजज्वलित करने में सूर्य ग्रहण काल विशेष रुप से उपयोगी सिद्ध हो सकता है. स्वंय के अन्तर्मन से क्रोध, कलेश, घ्रणा जैसे अंधकार को मिटान के लिये ग्रहण मोक्ष काल के बाद दैविक आराधना, पूजा अर्चना इत्यादि विशेष रुप से की जाती सकती है.
सूर्य ग्रहण काल में सूतक नियम लगने के कारण ग्रहण के बाद ही पूजा, अनुष्ठान, दान आदि कार्य करने चाहिए, तथा इसके मध्य की अवधि में मंत्र सिद्धि, जप, तप कार्य किये जा सकते है. आधुनिक युग के बुद्धिजीवियों के अनुसार, इस काल में ध्यान, मनन, जप, उपवास आदि कार्य करने का कोई सार्थक औचित्य नहीं कहा गया है.
इस प्रकार की अवधारणा का जन्म शायद व्यवसायिकरण के फलस्वरुप हुआ है. लालच के बढते हाथों ने व्यक्ति को काफी हद तक स्वार्थी बना दिया है. जहां उसे लाभ न हो, उस कार्य में आज का व्यक्ति समय लगाना ही नहीं चाहता और अगर वह लगाता भी है तो कार्य पूरा होने के बाद अपनी मनोइच्छा पूरी होने की शर्ते रख देता है, ऎसे में ध्यान, मनन, जप और उपवास जैसे कार्य कितना पुण्य देते है, इस विषय पर संशय रहेगा.
किन्तु इन कार्यो का दूसरा पहलू देखे तो चाहे स्वार्थ भावना के कारण ही सही व्यक्ति कुछ समय के लिये ध्यान व धार्मिक क्रियाओं से जुडता तो है, कम से कम कुछ क्षण तो वह अच्छे कार्य करने का प्रयास करता है.
इस प्राकृ्तिक नजारे को देखने से पहले कुछ विशेष सावधानियों का ध्यान रखना आवश्यक है.
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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