आपको बता दें कि जन्म राशि (चन्द्र राशि) से गोचर में जब शनि द्वादश, प्रथम एवं द्वितीय स्थानों में भ्रमण करता है, तो साढ़े -सात वर्ष के समय को शनि की साढ़ेसाती कहते हैं।
	
	एक साढ़ेसाती तीन ढ़ैया से मिलकर बनती है। क्योंकि शनि एक राशि में लगभग ढ़ाई वर्षों तक चलता है। प्रायः जीवन में तीन बार साढ़ेसाती आती है। प्राचीन काल से सामान्य भारतीय जनमानस में यह धारणा प्रचलित है कि शनि की साढ़ेसाती बहुधा मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दृष्टि से दुखदायी एवं कष्टप्रद होती है। शनि की साढ़ेसाती सुनते ही लोग चिन्तित और भयभीत हो जाते हैं। साढ़ेसाती में असन्तोष, निराशा, आलस्य, मानसिक तनाव, विवाद, रोग-रिपु-ऋण से कष्ट, चोरों व अग्नि से हानि और घर-परिवार में बड़ों-बुजुर्गों की मृत्यु जैसे अशुभ फल होते हैं।
	
	अनुभव में पाया गया है कि सम्पूर्ण साढ़े-सात साल पीड़ा दायक नहीं होते। बल्कि साढ़ेसाती के समय में कई लोगों को अत्यधिक शुभ फल जैसे विवाह, सन्तान का जन्म, नौकरी-व्यवसाय में उन्नति, चुनाव में विजय, विदेश यात्रा, इत्यादि भी मिलते हैं।
	
	शनि की साढ़ेसाती व ढ़ैया से बचने के उपाय-
	
	व्रत-
	
	शनिवार का व्रत रखें। व्रत के दिन शनिदेव की पूजा (कवच, स्तोत्र, मन्त्र जप) करें। शनिवार व्रतकथा पढ़ना भी लाभकारी रहता है। व्रत में दिन में दूध, लस्सी तथा फलों के रस ग्रहण करें, सांयकाल हनुमान जी या भैरव जी का दर्शन करें। काले उड़द की खिचड़ी (काला नमक मिला सकते हैं) या उड़द की दाल का मीठा हलवा ग्रहण करें।
	
	दान-
	
	शनि की प्रसन्नता के लिए उड़द, तेल, इन्द्रनील (नीलम), तिल, कुलथी, भैंस, लोह, दक्षिणा और श्याम वस्त्र दान करें।
	
	रत्न/धातु-
	
	शनिवार के दिन काले घोड़े की नाल या नाव की सतह की कील का बना छल्ला मध्यमा में धारण करें।
	
	मन्त्र
	
	-महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य ten माला, one hundred twenty five दिन) करें-
	
	ऊँ त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं
	उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमुर्क्षिय मामृतात्।
	
	- शनि के निम्नदत्त मंत्र का twenty one दिन में twenty three हजार जप करें -
	
	ऊँ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
	शंयोभिरत्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
	
	-पौराणिक शनि मंत्र :
	
	ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
	छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।
	
	स्तोत्र-
	
	शनि के निम्नलिखित स्तोत्र का ११ बार पाठ करें या दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।
	
	कोणरथः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः
	सौरिः शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥
	तानि शनि-नमानि जपेदश्वत्थसत्रियौ।
	शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद् भविष्यति॥
	
	साढ़साती पीड़ानाशक स्तोत्र - पिप्पलाद उवाच -
	नमस्ते कोणसंस्थय पिड्.गलाय नमोस्तुते।
	नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥
	नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
	नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
	नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
	प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥
	
	औषधि-
	
	प्रति शनिवार सुरमा, काले तिल, सौंफ, नागरमोथा और लोध मिले हुए जल से स्नान करें।
	
	अन्य उपाय
	
	-शनिवार को सांयकाल पीपल वृक्ष के चारों ओर ७ बार कच्चा सूत लपेटें, इस समय शनि के किसी मंत्र का जप करते रहें। फिर पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें, तथा ज्ञात अज्ञात अपराधों के लिए क्षमा मँIगें।
	
	-शनिवार को अपने हाथ की नाप का nineteen हाथ काला धागा माला बनाकर पहनें।
	
	टोटका -
	
	शनिवार के दिन उड्रद, तिल, तेल, गुड़ लिकी लड्डू बना लें और जहाँ हल न चला हो वहां गाड़ दें।
	
	शनि की शान्ति के लिए बिच्छू की जड़ शनिवार को काले डोरे में लपेट कर धारण करें।

