Mahalakshami Vrat in the Year 2021 will starts from Monday, 13th September 2021 and ended on Tuesday, 27th September 2021
श्री महालक्ष्मी व्रत का प्रारम्भ भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन से किया जाता है, जो कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्ठमी तिथि तक चलता है। यह व्रत राधा अष्टमी के दिन से ही प्रारम्भ किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत 16 दिनों तक चलता है। इस व्रत में माता लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है।
महालक्ष्मी व्रत में सबसे पहले प्रात:काल स्नान आदि कार्यो से निवृ्त होकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है। व्रत का संकल्प लेते समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
अर्थात हे देवी महालक्ष्मी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगा। आपकी कृ्पा से यह व्रत बिना विध्नों के पर्रिपूर्ण हों, ऎसी कृ्पा करें। यह कहकर अपने हाथ की कलाई में, ऐसा डोरा जिसमें 16 गांठे लगी हों, बाध लेना चाहिए। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारम्भ करके आश्विन मास के कृ्ष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक यह व्रत किया जाता है और पूजा की जाती है। व्रत पूरा हो जाने पर वस्त्र से एक मंडप बनाया जाता है उसमें लक्ष्मी जी की प्रतिमा रखी जाती है।
श्री लक्ष्मी को पंचामृ्त से स्नान कराया जाता है और फिर उसका सोलह प्रकार से पूजन किया जाता है। इसके बाद व्रत करने वाले उपवासक द्वारा ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और दान - दक्षिणा दी जाती है। पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के भोग रखे जाते है। नये सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखा जाता है। इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
जिसका अर्थ है कि क्षीर सागर से प्रकट हुई हे माता लक्ष्मी जी, आप चन्दमा की सहोदर, श्री विष्णु वल्लभा, महालक्ष्मी इस व्रत से संतुष्ट हो। इसके बाद चार ब्राह्मण और 16 ब्राह्मणियों को भोजन करना चाहिए। इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है, इस विधि विधान से जो इस व्रत को करता है, उसे अष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
16वें दिन इस व्रत का उद्धयापन किया जाता है। जो व्यक्ति किसी कारण से इस व्रत को 16 दिनों तक न कर पायें, वह 3 दिन तक भी इस व्रत को कर सकता है। तीन दिनों के महालक्ष्मी व्रत में प्रथम दिन, व्रत के आठंवें दिन व व्रत के सोलहवें दिन का प्रयोग किया जा सकता है। इस व्रत को लगातार 16 वर्षों तक करने से विशेष शुभ फल भी प्राप्त होते है। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, केवल फल, दूध, मिठाई इत्यादि का सेवन किया जा सकता है।
प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्माण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये़ और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा, ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की।
यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है। देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बार तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा। यह कहकर श्री विष्णु जी चले गये।
अगले दिन वह सुबह चार बजे ही वह ब्राह्मण मंदिर के सामने जाकर बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं, तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से ही हुआ है। लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा।
ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह् करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। उस दिन से ही यह व्रत, श्रद्धालु विष्णु लक्ष्मी के भक्तों द्वारा उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्धा से किया जाता है।