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Sakat Chauth Vrat Date in

Sakat Chauth Vrat in the Year 2022 will be Celebrated on Friday, 21 January 2022.

Sankata-haaraa Chaturthi falls every month on the Chauth (fourth day) after Poornima (Full Moon day) means it is Krihna Paksh Chaturthee. Sankat means trouble, an Haaraa means to take it off. So by keeping fast on this day all kinds of problems are removed. This is also called as Ganesh Chauth,Mahi chauth or Tilkuta Chauth.In this day Lord Ganesh and and Moon is worshied.This Vrat is done by a married women for a better future body strength, Good-fortune, and wealth for the children It is believe in UP and MP that every Married women should do atleast 2 Chauth तिल के दस लड्डू बनाकर, पांच लड्डू देवता को चढ़ावे और शेष पांच ब्रह्मण को दान दे देवें | गुड मे बने तिल (सफेद) के लड्डू चंद्र दर्शन करें और चंद्रमा को भी अर्घ्या प्रदान करें| क्योंकि इस दिन भगवान गणेश चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करतें हैं| Method of Poojaa In the morning, after your daily cores, take bath Do your morning prayers. Recite \\\\\\\\"Om Ganeshaaya Namah\\\\\\\\", \\\\\\\\"Om Vakratundaaya Hum\\\\\\\\". This is called Ganesh Ashtottar. During the fasting period, Water, Milk,Fruits and Tea are permitted. In the evening, like you do for any Vrat, make a Mandap and place a photo of Lord Ganesh. Decorate the photo of Lord Ganesh with available flowers. offer Durva ( Doorva - grass (creeper)) with 3 or 5 nodes to the Lord Ganesh and keep somw Doorva Grass aside to worship the Moon. Light Diyaa (lamp) and Agarbattee (incense stick) and Offer til ke Ladoo (seaseme seeds made with Jaggery and Seaseme seeds),Sweet Potato, Jaggery. This is known as Naivdya. Now in the end do the Arati. Sing the song Jaya Ganesh, Jaya Ganesh, Jaya Ganesh Devaa... and ask for his blessings. After this the moon should ne worshiped with Til (Seaseme Seeds) and Arghya (Offeringby milk and water mixture). Moon-god and Rohini are also worshipped. At night, after the moonrise, the fast is broken after offering the moon, the sacred water called \\\\\\\\"Arghya\\\\\\\\". It has a related legend which claims that it was the great sage Markandeya who advised a dethroned king to keep fast on this day to regain his lost glory. He did so and everything was well for him. Regarding Moon rise - sometimes due to the clouds etc, the Moon may not be visible at the specified time. In that case after the Moon rise timings one may perform the Poojaa. प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी यूं तो गणेश कहलाती है तथा धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्रियां उस दिन व्रत व गणेश पूजन करती हैं। परंतु जहां तक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का प्रश्न है, सभी महिलाएं इस व्रत को करती हैं। लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है। वैसे वक्रतुण्डी चतुर्थी , माही चौथ अथवा तिलकुटा चौथ इसी के अन्य नाम हैं। इस दिन विद्या-बुद्धि-वारिधि, संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। एक पटरे पर मिट्टी की डली को गणेशजी के रूप में रखकर उनकी पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद लोटे में भरा जल चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है। रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही महिलाएं भोजन करती है। सकट चौथ के दिन तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर तिलकुटा अर्थात तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा उसकी गर्दन काटता है, फिर सबको प्रसाद दिया जाता है। तिलकुटे से ही गणेशजी का पूजन किया जाता है तथा इसका ही बायना निकालते हैं और तिलकुट को भोजन के साथ खाते भी हैं। जिस घर में लड़के की शादी या लड़का हुआ हो, उस वर्ष सकट चौथ को सवा किलो तिलों को सवा किलो शक्कर या गुड़ के साथ कूटकर इसके तेरह लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बहू बायने के रूप में सास को देती है। कहीं-कहीं इस दिन व्रत रहने के बाद सायंकाल चंद्रमा को दूध का अर्ध्य देकर पूजा की जाती है। गौरी-गणेश की स्थापना कर उनका पूजन तथा वर्षभर उन्हें घर में रखा जाता है। तिल, ईख, गंजी, भांटा, अमरूद, गुड़, घी से चंद्रमा गणेश का भोग लगाया जाता है। यह नैवेद्य रात भर डलिया से ढककर रख दिया जाता है, जिसे \\\\\\\\\\\'पहार\\\\\\\\\\\' कहते हैं। पुत्रवती माताएं पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। उस ढके हुए \\\\\\\\\\\'पहार\\\\\\\\\\\' को पुत्र ही खोलता है तथा उसे भाई-बंधुओं में बांटा जाता है। कथा एक बार विपदाग्रस्त देवता भगवान शंकर के पास गए। उस समय भगवान शिव के पास स्वामी कार्तिकेय तथा गणेश भी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा- \\\\\\\\\\\'तुम में से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे?\\\\\\\\\\\' तब कार्तिकेय ने स्वयं को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया। यह बात सुनकर शिवजी ने गणेश की इच्छा जाननी चाही। तब गणेशजी ने विनम्र भाव से कहा- \\\\\\\\\\\'पिताजी! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं।\\\\\\\\\\\' यह सुनकर हंसते हुए शिव ने दोनों लड़कों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी- \\\\\\\\\\\'जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।\\\\\\\\\\\' यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। गणेशजी ने सोचा कि चूहे के बल पर तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची। वे 7 बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पद चिह्न दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। कार्तिकेय जी गणेश पर कीचड़ उछालने लगे तथा स्वयं को पूरे भूमण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिव से कहा-\\\\\\\\\\\'माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं इसलिए मैंने आपकी 7 बार परिक्रमाएं की हैं।\\\\\\\\\\\' गणेश की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकरजी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेश की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया- \\\\\\\\\\\'त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।\\\\\\\\\\\' तब गणेशजी ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया। यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने अपने चंद्रमा को यह बताया कि चौथ के दिन चंद्रमा तुम्हारे मस्तक का सेहरा (ताज) बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चंद्र अर्ध्यदान देगा। उसका त्रिविधि ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा और एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षातिरेक में प्रणाम कर अंतर्धान हो गए।

 
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