वह अनजान अतिथि

मनमाड के निकट पन्नी गांव एक नदी के किनारे बसा हुआ है। एक रात भयानक वर्षा आई। आँधी, तूफान और वर्षा को देखकर गंगा भावड़िया नामक मल्लाह अपनी नाव को बचाने के लिए घाट की ओर चला जाता है। उसे भय था कि कच्ची रस्सी के टूट जाने से उसकी नाव कहीं पानी में बह न जाए। नाव नहीं रहेगी तो वह अपनी रोजी-रोटी कैसे चलाएगा ? 
उसके चले जाने के उपरांत उसकी पत्नी देवगिरि यम्मा अकेले घर में रह जाती है। बादलों की घुमड़न तेज वर्षा, चमकती विद्युत और सांय-सांय करती तेज हवा का तूफान कहर ढाने लगता है। देवगिरि यम्मा भयभीत हो उठती है। उसे अपने पति की सुरक्षा की चिन्ता है। 
उसी समय अस्सी साल का एक बूंढा अतिथि देवगिरि यम्मा का द्वार खटखटाता है। 
‘‘कौन है ?’’ देवगिरि यम्मा पूछती है। 
‘‘बेटी बूंढा अतिथि हूँ। भूखा-प्यासा हूँ क्या सिर छिपाने के लिए इस भयानक रात में थोड़ी जगह दोगी ?’’ द्वार पर खड़ा बूढ़ा कहता है। 
‘‘ठहरो आती हूँ।’’ भीतर से देवगिरि यम्मा जवाब देती है

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