एक राजा एक भिखारी पर खुश हुआ..
और कहा..
“मांग तुझे जो चाहिए मैँ दुगां ”.
भिखारी भी असमान्य था.
लेकिन राजा के सामने र्शत रखी कि
“मैँ मांगुगा जरुर लेकिन मेरा भिक्षापात्र
पुरा भरना पडेगा.”
भिखारी की र्शत से राजा के खुद पर आघात लगा.
उसको लगा कि,
एक भिखारी कि इतनी हिम्मत?
राजा को ललकार?
राजा ने हुक्म किया:
“इसका भिक्षापात्र
किमती हीरो से भर दो”
राज्य के खजाने मेँ से हीरे लाये..
और भिक्षापात्र मेँ डाले..
लेकिन सभी को आच्यर्य हुआ कि भिक्षापात्र
तो खाली ही था..
राजा ने फिर हुक्म दिया..
“मोतीयो से भरो.”
राज्य कोष मेँ जितने मोती थे सब डाल दियेँ..
फिर भी भिक्षापात्र खाली था...
अब राजा परेशान हो गया.!
उसको लगा अगर ऐसा ही होता रहा तो..
राज्य का सारा खजाना खाली हो जायेगा..
वो तुरंत भिखारी के पैरो पर पडा
और बोला..
“माफ करना, आप तो महान संत हो,
आपको पहचानने मेँ भुल हो गई,
आपके भिक्षापात्र कि माया भी मैँ अब तक समझ नही पाया.
आप क्रपया ईतना बताईए
कि यह भिक्षापात्र किसका बना है?”
भिखारी कहा, “इन्सान की खोपडी से बना है
यह.”
राजा समझ गया,
कि इन्सान की खोपडी मेँ अनेक उम्मीदे,
अपेक्षाये उ ती है ,
जो कभी पुरी नही हो सकती.
उडते पुत्र के सपने कोई पिता पुरा नही कर नही सकता.
खर्चाल पत्नी के सपने कोई पति पुरा कर नही सकता.
मंत्रीयो के सपने जनता पुरी नही कर सकती..
स्वामी रामतीर्थ ने कहा है –
जिस इन्सान कि कोई
अपेक्षा नही वो शंहशाहो का शहंशाह
और
जिसके मन मेँ अपेक्षाओ का सागर भरा है
वो भिखारीयो का भिखारी.
जिसको कुछ ना चाही वो साहब के साहब
–संत कबीर