सुन्दरकाण्ड - सुन्दरकाण्ड
भाग - 20

दो0- ब्रह्य अस्त्रा तेहि साँध कपि मन कीन्ह बिचार ।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार  ।। 19 ।।

ब्रह्मबान कपि कहुँ  तेहि मारा । परतिहुँ बार कटकु संघारा ।।
तेहिं देखा कपि मुरूछित भयऊ । नागपास बाँधेसि लै गयऊ ।।
जासु नाम जपि सुनहु भवानी । भव बंधन काटहिं नर ग्यानी ।।
तासु दूत कि बंध तरू आवा । प्रभु कारज लहगि कपिहिं बँधावा ।।
कपि बंधन सुनि निसिचर धाए । कौतुक लागि सभाँ सब आए ।।
दसमुख  सभा दीखि कपि जाई । कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई ।।
कर जोरें सुर दिसिप  बिनीता । भृकुटि बिलोकत सकलन सभीता ।।
देखि प्रताप न कपि मन संका । जिमि अहिगन महुँ गरूड़ असंका ।।

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