Pilgrimage in India -अदभुत धार्मिक स्थल

ज्वर होने पर अक्सर लोग डाक्टर व हकीमों के पास जाकर मोटी रकम चुका कर उपचार करवाते हैं। मगर ऊधमपुर जिले के टिकरी इलाके में पडता लाडा लाडी दा टक्क नाम से प्रसिद्ध दरयाबड में एक ऐसा पत्थर है, जिसके चारों तरफ कच्चा धागा (सूत) बांधकर मन्नत मांगने से पुराने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है। मान्यता है कि यह पत्थर एक दुल्हन की डोली है, जिसने अपने पति द्वारा एक ग्वाले से मजाक में लगाई शर्त को पूरा करने के लिए अपने प्राण त्यागकर डोली व दहेज सहित शिला रूप ले लिया था।

टिकरी से दरयाबड करीब तीन किलोमीटर दूरी पर है। रास्ता टिकरी हायर सेकेंडरी स्कूल के साथ होकर गुजरता है, जो कच्चा है। वाहन से करीब आधे रास्ते तक पहुंचा जा सकता है। आगे का आधा रास्ता ऊबड-खाबड व पहाडी होने के कारण पैदल ही तय करना पडता है। यहां की ऊंचाई से चारों तरफ मनोरम दृश्य नजर आते हैं। परंतु, इस जगह की सुंदरता इसकी विशेषता नहीं, बल्कि यहां पर शिला रूप में मौजूद दुल्हन की डोली इसे खास बनाती है।

किंवदंती के मुताबिक एक बारात इस इलाके से गुजर रही थी। दुल्हन को तेज प्यास लगने पर उसने पानी मांगा। दरयाबड से पानी की बावली करीब पौने किलोमीटर दूर पहाडी के नीचे थी। थके हुए दूल्हे व बारातियों में वहां से पानी लाने की हिम्मत न थी। इसी दौरान दूल्हे की नजर वहां बकरियां चरा रहे एक ग्वाले पर पडी, जो चोरी-छुपे दुल्हन को देख रहा था। उसने ग्वाले को बेवकूफ बनाकर पानी मंगवाने के लिए उसे अपने पास बुलाया और कहा कि यदि वह एक ही सांस में नीचे से पानी लेकर ऊपर आयेगा तो दुल्हन उसकी हो जाएगी।

सीधा-साधा ग्वाला उसकी बातों में आ गया। दूल्हे ने पानी लाने के लिए ग्वाले को दहेज के सामान में से एक गडवा निकाल कर दिया। तय शर्त के मुताबिक ग्वाला एक ही सांस में पानी लेकर ऊपर तो पहुंच गया, लेकिन पानी का गडवा दूल्हे को सौंपते ही उसके प्राण निकल गए।

दुल्हन को पानी पिलाने के बाद जब बारात चलने लगी, तो पति ने सारी बात अपनी पत्‍‌नी को बताई। जिसके मुताबिक अब वह ग्वाले की पत्‍‌नी बन चुकी है। इसके बाद दुल्हन ने अपने प्राण त्याग दिए। उसके सती होते ही दुल्हन, ग्वाला व डोली शिला में तबदील हो गए। साथ ही दुल्हन का सारा दहेज भी पत्थर में बदल गया।

इस घटना के बाद से ही दरायबड का नाम लाडा लाडी दा टक्क (दूल्हा-दुल्हन का टीला) पडा। यहां पर डोली जैसा एक पत्थर है, जिसके ऊपर लंबा गोल पत्थर है। इसे स्थानीय लोग दुल्हन बताते हैं। इसके चारों तरफ अक्सर सफेद रंग का सूत बंधा नजर आ जाता है। जो बुखार ठीक होने के लिए मांगी गई मन्नत की निशानी है।

दरयाबड निवासी बुजुर्ग द्वारका नाथ व रूप सिंह, टिकरी ग्रामीण विकास कमेटी के चेयरमैन शिव कुमार तथा नजदीक के गांव खील झिलमाडा निवासी तारा सिंह, प्रीतम सिंह ने बताया कि इस जगह पर सती हुई दुल्हन का वास माना जाता है। वैसे तो यहां पर मांगी गई हर मन्नत पूरी हो जाती है, लेकिन बुखार के मामले में यह जगह सबकी आजमाई हुई है। इसके लिए सूत का धागा लेकर पहले एक सिरे से बुखार पीडित व्यक्ति के पांव से शरीर तक का नाप लिया जाता है। फिर नाप वाले सिले से डोली के चारों तरफ सूत लपेट कर मन्नत मांगी जाती है। धागा बांधने के अगले दो दिन के भीतर बुखार पीडित ठीक हो जाता है। उन्होंने बताया कि इलाके में जब किसी का बुखार लंबे समय तक नहीं टूटता तो वह ऐसा ही करते हैं। इस जगह पर किसी तरह का अपवित्र काम करने वाले को दु:ख और परेशानियां झेलनी पडती है। दुल्हन का पत्थर रूपी दहेज बिना किसी चीज से जोडे पत्थरों को एक दूसरे पर टिका कर टीला सा बना है। स्थानीय लोग इसके आज तक कभी न गिरने का दावा भी करते हैं।

उन्होंने बताया कि बलवंत ठाकुर द्वारा निर्देशित राज्य, देश व विदेश में धूम मचाने वाला घुमाई नाटक इसी घटना पर आधारित है।

State : Jammu and Kashmir
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